पंडितजी राम-राम! अरे, एक बार देख दो लिजिये। ये देखिये साहब, कोने वाले हनुमान मंदिर के पुजारी हैं। हमारे गिने-चुने ग्राहकों में से एक थे, जब मैं अपना ठेला वहाँ, मंदिर के पास लगाता था। पर वहाँ कुछ ज़्यादा ग्राहक नहीं थे। जामा मस्जिद के बाहर ज़्यादा लोग थे, बिक्री भी ज़्यादा थी, तो ठेला यहाँ लगाना शुरू कर दिया। तबसे पंडितजी ने यहाँ आना बंद कर दिया है, शायद इसलिये क्योंकि पास में ही सोनू का चिकन-कोर्नर है।
मेरे ठेले की जगह बदली है, मगर नाम आज भी वही है।
“लैला ने कहा मजनू के कान में,
चाट खाना पप्पू की दुकान में।”
जामा मस्जिद के बाहर जितने लोग हैं, उतने ही ठेलेवाले। बिक्री कम हो जाती है। वैसे मुझे एक बात आज तक समझ नहीं आयी। भगवान् ने भी एक अजीब ही दस्तूर चलाया है, हर जगह अलग भगवान् और सभी के भगवान् सच्चे।
चलिये छोड़िये हुज़ूर, मुझे तो खुद कुछ समझ नहीं आता, आपको क्या समझाऊँ?
यदी रात को बीवी-बच्चों का पेट भर जाए तो गनीमत मानिये। और आप, कंधे पर बस्ता पहने हुए, गर्दन में कैमरा लगाए, लगता है घूमने निकले हैं। लाजवाब जगह है चांदनीचौक। पुरानी है, मगर है अपनेआप में बेहतरीन।
वैसे सोच रहा हूँ कि गुरुद्वारे के बाहर लगाऊँ अपना ठेला। आजकल वहाँ लोगों का आना-जाना बढ़ रहा है। कोई चाटवाला आस-पास है भी तो नहीं। आप छोड़िये इन बातों को। लीजिये चाट खाइये।
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